क्या अब भी मानव बदलेगा?

Kashish Singh
1 Min Read
Disclosure: This website may contain affiliate links, which means I may earn a commission if you click on the link and make a purchase. I only recommend products or services that I personally use and believe will add value to my readers. Your support is appreciated!

कभी सिसकती बालाओं की, 

सुध लेती थी जनता सारी,

आज चहकती अबलाओं की, 

चिता सजाने की तैयारी।।

कब तक ऐसी दशा रहेगी? 

कब तक तांडव क्रूर चलेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

सारे मानव मूल्य तिरोहित, 

मानवता की कत्ल हो रही, 

हर्षित दिखते लगभग सारे, 

हाहाकार चतुर्दिक पाकर, 

कैसा वज्र हृदय मानव अब 

हिंसक, पशुवत, ब्यभिचारी? 

कबतक ऐसी ब्यार बहेगी? 

कबतक झंझावात चलेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

परम्पराएं लुप्त हो रहीं, 

नव – जीवन शैली अपनाकर, 

चकाचौंध फ़ैशन की दुनिया, 

झूठ – मूठ जादू दिखलाकर, 

पिता – पुत्र, गुरु – शिष्य विखण्डित, 

भावशून्य, अब्यक्त, अपरिमित, 

कब तक रिश्ते बेजान रहेंगे? 

कब तक ऐसा ब्यवधान रहेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

बालेन्दु कुमार बम बम 

पी. जी. टी, अंग्रेजी डी.ए.वी कैंट एरिया, गया (बिहार)

Image Credit: Aaron Blanco Tejedo

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *