मुस्लिम महिलाएं और हिजाब

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By राजेश ओ.पी. सिंह

कर्नाटक के उड़पी जिले से उभरा हिजाब सम्बन्धी विवाद सही मायनों में हमारी सहिष्णुता और

धर्म-निरपेक्ष मूल्यों पर सवालिया निशान लगाता है।

‘हिजाब मुद्दे’ से संबंधित खबरें और उसके साथ जुड़ी राय , वाद-विवाद, समर्थन-आलोचना आदि हम सब के सामने है। किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे का विश्लेषण करते समय तथ्यों और विचारों के बीच अंतर करना हमेशा महत्वपूर्ण होता है। इसी प्रकार हिजाब के मुद्दे पर विचार-विमर्श करते समय, यह आवश्यक है कि हम पाक कुरान शरीफ के सभी पहलुओं को पढ़ें और समझें, मुस्लिम उलेमा और विद्वानों की व्याख्या विवेचना को भी देखें और साथ ही साथ भारतीय संविधान को भी ध्यान में रखें और केवल स्कूल विषय को ही ना देखते हुए, एक व्यापक कैनवास में अधिकारों व चयन के पहलुओं को रखें।

पाक कुरान शरीफ के हवाले से यदि हम बात करें तो आयात 24:31 में पुरुष को ‘मोडेस्टी’ का पालन करने को कहा गया है। साथ ही, महिलाओं की पोशाक के संदर्भ में हिजाब का पाक कुरान में कोई उल्लेख नहीं है। हिजाब को केवल ड्रेसिंग के कोड के रूप में देखना गलत होगा। इसका सही मतलब एक ‘कोड ऑफ मोडेस्टी’ है जिसका अर्थ आपके समग्र व्यक्तित्व से है। यदि हम पाक कुरान शरीफ की अन्य आयतों को भी पढ़ें और समझे जैसे 7:46, 33:53 आदि यहां पर स्पष्ट जाहीर है कि हिजाब के कई आयाम हैं, इसका महिलाओं के पहनावे से कोई लेना-देना नहीं है। साथ ही करुणा व सहनशीलता पाक कुरान शरीफ की महत्वपूर्ण शिक्षाएं हैं। फिर पूरे इस्लाम को हिजाब के मुद्दों तक सीमित रखना इन सब महत्वपूर्ण बातों की तौहीन होगी।

इसी सन्दर्भ में जब हम महिला के लिबास को ‘मोडेस्टी’ के पैमाने पर लेकर आते हैं, तो जैसे एक कार को चलने के लिए सभी टायरों के सही संतुलन की आवश्यकता होती है, इसी तरह यह मोडेस्टी की बात भी केवल महिलाओं के कपड़े पोशाक से अकेले नहीं आ सकती है। समाज के सभी वर्गों से सही सहयोग, सकारात्मक सोच और सुधार इसमें आवश्यक हैं।

निस्संदेह ‘चॉइस’ (विकल्प) का मुद्दा महत्वपूर्ण है, कि कोई महिला या पुरुष क्या पहने या क्या ना पहने। विकल्प के इस विचार को एक बड़े संदर्भ में समझना होगा कि कोई भी पुरुष या महिला द्वारा पहनने के लिए लिया गया निर्णय खुद की इच्छा से लिया जा रहा है या कुछ परिस्थितियों के कारण लिया गया है या किसी दूसरे की ओर से प्रतिक्रियाशील पहचान की भावना से लिया जा रहा है, आदि जैसे कई पहलुओं पर ध्यान देना होगा।

कुछ मुस्लिम देश जिन्होंने हिजाब प्रतिबंधित किया है या प्रतिबंधित नहीं किया है, का उदाहरण देना गलत है , क्योंकि राष्ट्रीय हित का विचार प्रत्येक देश के लिए अलग अलग है। इसके अलावा आधुनिकता के विचार को कभी भी कपड़ों से परिभाषित नहीं किया जाता है, यह अच्छे विचारों और सुधार से आता है।

महिलाओं से संबंधित मुद्दों का जेंडर व लिंग के दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाना चाहिए। यहाँ एक व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता है कि क्या हिजाब या कोई भी पोशाक पारिवारिक परंपराओं, पुरुष वर्चस्व, पितृसत्ता या सामाजिक परिस्थितियों के आग्रह का परिणाम है।

इसी के साथ महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और उनके अधिकारों और स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के औचित्य के लिए पवित्र कुरान के संदेश का दुरुपयोग या गलत मायने बताने के मुद्दा को भी समझना चाहिए। इसी तरह, यह तर्क दिया जाता है कि यह महिला सशक्तिकरण के मुद्दे का उपयोग करके पूरे समुदाय को हाशिए पर डालने का प्रयास है।

थोड़ी हटकर बात करें, तो विभिन्न देशों के फैशन शो में व अंतराष्ट्रीय ब्रांड्स में हिजाब व स्कॉर्फ देखने को मिल सकता है। कई महिलाएं लड़कियां इसे पहनती हैं, कई नहीं। साथ ही वैश्वीकरण ने अरब दुनिया के अनुसार मुस्लिम कपड़ों का मानकीकरण (Standardization) भी किया। यही कारण है कि मुस्लिम महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा को सिर्फ हिजाब तक सीमित नहीं किया जा सकता है।

मुस्लिम महिलाओं व लड़कियों के मुद्दे आज की दुनिया में विविध हैं। किसी भी अन्य महिला की तरह मुस्लिम महिलाओं व लड़कियों के सामने अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जैसे तकनीकी प्रगति के अनुकूल होना, शिक्षा में वृद्धि, नौकरी, स्किल डेवलपमेंट, अच्छा स्वास्थ्य, घर पर मुद्रास्फीति का प्रभाव आदि। समाज के सभी वर्गों की ओर से उन्हें संबोधित करने का प्रयास होना चाहिए।

संस्थानों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो व्यक्तियों को सर्वोत्तम परिणाम उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहन दें। समावेश के समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से महिलाओं को सर्वोत्तम शैक्षिक और अन्य विकास के अवसर सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह विविधता और प्रगति की ओर बढ़ने का कारक होना चाहिए।

इन सभी तथ्यों के साथ साथ भारतीय संविधान के अनुसार सरकार व समाज का दायित्व बनता है कि किसी को भी उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ भी करने के लिए मजबूर ना किया जाना चाहिए जब तक कि उसके उस कृत्य से किसी दूसरे को नुक्सान ना हो।

कपड़ों में लड़का या लड़की क्या पहनना चाहता है ये उनका व्यक्तिगत मत है, इस पर सरकार और समाज को जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए ना ही लागू करने में और ना ही बैन करने में।

कर्नाटक सरकार द्वारा हिजाब पर जबरदस्ती प्रतिबंध लगाना अपने आप में मुस्लिम महिलाओं के साथ धक्का शाहाई है, जब जब ऐसी जबरदस्ती की जाती है तब तब लोग सड़कों पर निकलते हैं और इस से ना केवल बच्चों की शिक्षा का नुकसान होता है बल्कि अनेकों बार सरकारी संपति का भी नुकसान होता है।

इसलिए सरकार को ऐसे जबरदस्ती किसी भी समुदाय के पहनावे पर प्रतिबंध या अनुमति नहीं देनी चाहिए।

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